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यह देखों पांच साल में कैसे बिखरा मोदी का कुनबा, कौन-कौन हुआ अलग - Dainik Reporters

यह देखों पांच साल में कैसे बिखरा मोदी का कुनबा, कौन-कौन हुआ अलग

liyaquat Ali
3 Min Read
file photo

 

नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव 2019 का बिगुल बज चुका है। भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र की एनडीए सरकार के पांच साल पूरे हो रहे हैं। साल 2014 में भाजपा अपने दम पर 272 का जादुई आंकड़ा पार करने में सफल हुई थी और कई राजनीतिक पार्टियों के समर्थन के साथ एनडीए की सरकार बनाई थी। इन पांच सालों में एनडीए के कई साथी छूटे, तो वहीं एनडीए ने जदयू जैसे अपने पुराने और महत्वपूर्ण साथी को फिर से अपने साथ जोड़ लिया। साथ ही तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक, पीएमके और डीएमडीके जैसे नए साथी भी जोड़े।
इस लोकसभा चुनाव में देखना दिलचस्प होगा कि इन घटनाक्रमों का एनडीए ने बीते पांच साल में अपने पांच साथियों को गंवाया है। इनमें तेलगू देशम पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, स्वाभिमानी शेतकारी संगठन, राष्ट्रीय लोक समता दल और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा और असम गण परिषद शामिल हैं। हालांकि जदयू को फिर से जोड़ने में एनडीएक कामयाब रही।
तेलगू देशम पार्टी
तेदेपा आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा की मांग कर रही थी। वहीं केंद्र की एनडीए सरकार इस पशोपेश में थी कि आंध्र प्रदेश को दर्जा दे दिया गया तो बिहार सहित अन्य राज्य भी विशेष दर्जा की मांग करने लगेंगे। इसी बीच तेदेपा ने समर्थन वापस ले लिया। इस बार महागठबंधन में शामिल होकर तेदेपा चुनाव लड़ेगी।
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी
बिहार में जदयू मुखिया नीतीश कुमार और रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है। जदयू जब दोबारा एनडीए में शामिल हुई, तभी से कुशवाहा ने बगावत की राह पकड़ ली। केंद्र सरकार में मानव संसाधन राज्यमंत्री रहने के बावजूद शिक्षा जैसे मुद्दे पर आंदोलन शुरू कर दिया। अंतत: एनडीए से अलग होकर वह महागठंधन में शामिल हो गई।
हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा
बिहार विधानसभा चुनाव में जब जदयू ने एनडीए से अलग राह चुनी तो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी एनडीए में ही रहे। नीतीश फिर से एनडीए से जुड़े, तो हम की उपयोगिता कम लगने लगी। अपेक्षाओं के बीच जीतनराम अलग हो गए और कांग्रेस-राजद संग महागठबंधन में शामिल हो गए।
असम गण परिषद
असम गण परिषद का एनडीए से अलग होने के पीछे नागरिकता संशोधन बिल बड़ा कारण रहा। लोकसभा और राज्यसभा में बिल पास होने के बावजूद असम में लगातार इस बिल का विरोध होता रहा और इस बीच असम गण परिषद एनडीए से अलग हो गई।
स्वाभिमानी शेतकारी संगठन
स्वाभिमानी शेतकारी संगठन किसानों के मुद्दे को लेकर आवाज उठाती रही। किसानों के लिए केंद्र सरकार की नीतियों से असंतुष्ट रहते हुए यह पार्टी भी एनडीए से अलग हो गई।
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