बाबूलाल शास्त्री
गणेश का शाब्दिक अर्थ है गण ईश गण का अर्थ है देवता, ईश अर्थात स्वामी अर्थात देवताओं के स्वामी, देवता शब्द बहमा अर्थात औंकार का प्रतीक है, आध्यात्मिक रूप से गणपति को औंकार का ही मेल रूप माना गया है । मानव शरीर में पॉंच ज्ञानेन्द्रियां, पंाच कर्मदियां और चार अन्त:करण है इनके पीछे जो शक्तियां है उनको ही चौदह देवता कहते है ।
इन देवताओं के मूल प्रेरक भगवान श्री गणेश की पत्नियां रिद्वि-सिद्वि है । शुभ-लाभ पुत्र है एवं प्रतीक चिन्ह स्वास्तिक है । अथर्व शीर्ष नामक ग्रन्थ में श्री गणेश को पूर्ण ब्रहमा माना गया है ।
त्वं ब्रहमा त्वं विष्णु स्त्वं रूद्रस्तमिन्द्र स्त्माग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्य स्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रहमा भुर्भुव: स्वरोमू । कोई भी कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व श्री गणेश की आराधना करने से कार्य निर्विध्न सम्पन्न होता है जन साधाराण द्वारा भी प्रथम स्तुति की जाती है ।
वक्र तुण्ड महाकाय सूर्य कोटि सम्प्रभ: ।
निर्विध्ंन कुरू में देव सर्व कार्येषु सर्वदा ।।
कलौ चण्डी विनायको:- कलयुग में चण्डी देवी (दुर्गा) तथा विनायक गणपति शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता है । दोंनो माता एवं पुत्र है ।
साधकों द्वारा भगवान गणपति के क्रियात्मक और उपासनात्मक यन्त्रो-मन्त्रों का निर्माण समय-समय पर हुआ है यंत्रो एंव मंत्रो में अदभुत शक्ति होती है । जन साधारण मानव द्वारा भी गणेश उपासना की जा सकती है ।
गणपति का महामंत्र
- उॅं गं गणपतये नम: – सर्व सिद्वि हेतु ।
2.जय गणेश, काटो कलेश – संकट निवारण हेतु ।
3.गायत्री – उॅं एक दन्ताय विदमहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात ।
4.उॅं वक्रतुण्डाय नम: । 5.उॅं मेघोल्काय स्वाहा ।
6.उॅं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।
7.उॅं नमो भगवते एक द्रष्द्राय, हस्ति मुखाय, लम्बोदराय उच्छिंष्ट महात्मने आं को ही गं धे धे स्वाहा ।
8.उॅं ही ग्रीं हीं ।
9.उॅं श्री गं सौभ्याय स्वाहा गणपतये वर वरद सर्व जनं मे वश मानय स्वाहा ।
10.उॅं तत्पुरूषाय विदमहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात ।
संकट नाशक गणेश स्त्रोत:-
संकट नाशक गणेशस्तात्रम का श्रद्वापूर्वक पाठ करने से चमत्कारिक लाभ मिलता है एंव आयु कामना यश धन पुत्र मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
नारद उवाच:-
प्रणस्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् । भक्ता वंास स्मरे नित्यमायुष्कामार्थ सिद्वये ।।
प्रथम वक्रतुण्डं च एक दन्तं द्वितीयकम् । तृतीय कृष्णपिण्डगाक्ष गजवक्त्र चतुर्थकम् ।।
लम्बोदंर पंच्चम् च ष्ंाष्ट विकटमेव च । सप्तम् विध्न राजे च घुम्रवर्ण तथाष्टमम् ।।
नवम् भाल चन्द्रं च दंशम् तु विनायकम् । एकादंश गणपति द्वांदश तु गजाननम् ।।
द्वादशे तानि त्रिसन्ंध्य य: पढेन्नर । न च विध्न भय तस्य सर्व सिद्वि करे प्रभो ।।
विधार्थी लभते विंधा धनार्थी लभते घनम् । पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।
जपेद गणपति स्त्रोत षडभिर्यास फल लभेत् । सवत्तसरेण सिद्वि च लभते नात्र संशय: ।।
अष्टम्यों ब्राहणेभ्यश्च लिवित्वा य: समर्पयेत । तस्य विधा भवेत्सवंा गणेशंस्य प्रसादता ।।
गणेश स्तव राज स्त्रोत के पाठ से लक्ष्मी एंव सरस्वती की प्राप्ति होती है ।
गणपति तर्पण-तर्पणीय वस्तुओं से श्री गणेश के भिन्न-भिन्न अंगो पर तर्पण करने से भिन्न-भिन्न कामनाओं की सिद्वि होती है । ंिचंता एंव रोग निवारण के लिये मयुरेश स्त्रोत पाठ, परिवार में पारस्परिक प्रेम के लिये गणपति स्त्रोत का नित्य पाठ एंव पुत्र प्राप्ति के लिये संतान गणपति का नित्य पाठ करें ।
लक्ष्मी प्राप्ति हेतु उॅं हो ही है हो ह: नमो नम: जाप करें ।
शक्ति विनायक चतुरक्षर मंत्र – उॅं हीें गीं छीं का जाप करें ।
हैरब गणपति उपासना से सभी विपत्तियंा स्वत: नष्ट हो जाती है ।
ज्योतिष भविष्यवाणी नही करता बल्कि ग्रह स्थिति अनुसार गुण-दोष प्रदर्शित करता है । अत: ज्योतिष भविष्य का दर्पण है । श्री गणेशजी का जन्म लग्न में वृश्चिक लग्न द्वितीय भाव में स्वग्रही गुरू पराक्रम भाव में उच्च का मंगल बुद्वि स्थान पर उच्च का शुक्र राहु सप्तम् में उच्च का चन्द्र दशम् में स्वग्रही सूर्य लाभ में उच्च का बुध, केतु एंव मोक्ष भाव में उच्च के शनि है, लग्नेश, पंचमेश, नवमेश, स्वग्रही और उच्च के है जिनसे श्री गणेश प्रथम देव बनें ।
वास्तु निवास स्थल जन्म से मृत्यु परान्त जीवन जीने व विकास का कर्म स्थल है । वास्तुशास्त्र के अनुसार वास्तु दोष में गणेश जी की मूर्ति आशिर्वाद देते हुये या बैठे हुये की बह्रा चौक में लगानी चाहिये गणेश जी की मुख्य द्वार पर बामवर्त एवं उसकी पीठ पीछे दक्षिणावर्त मूर्तियों स्थापित करना चाहिये । शुभ नक्षत्र हस्त पुष्प अश्विनी तथा श्रवण नक्षत्र एंव शुभ मुहुर्त में श्री गणेश यंत्र, वक्रतुण्ड गणेश यंत्र, शक्ति विनायक यंत्र, लक्ष्मी विनायक यंत्र, हरिद्रा गणेश यंत्र, विशिष्ट गणेश यंत्र या गणेश मूर्ति पूजा आराधना निवास के ईशान कोण में पूर्वाधि मुख होकर करने से सिद्वि प्राप्त होती है ।
मानव विकास में देव दोष पितृ दोष, ऋ ण दोष श्रापित दोष, प्रमुख अवरोधक है । गणों के सेनापति को गणपति कहते है जो स्वंय मंगल गृह है जिसका रंग मूंगे के समान है गणपति को भी सिंदूर चढाते है जो मंगल मूर्ति और मंगल नाथ है एवं समस्त उक्त दोषों के निवारक है –- रोग निवारण – गणेश उपासना से अतिसार अरूचि मंदाग्नि पांडू जुखाम जलोदर क्षय रक्ताल्पता रक्त विक्रति संग्रहणी स्वपन्न दोष प्रदर मूत्र कृच्छा रक्त पित आदि रोगों से छुटकारा मिलता है ।
श्री गणेश स्तवन:-
गाइये गणपति जग वन्दन । शंकर सुवन भवानी नन्दन ।।
सिद्वि सदन गज बदन विनायक । कृपा सिन्धु सुन्दर सब लायक ।।
मोदक प्रिय मुद मंगल दाता । विधा वारिधि बुद्वि विधाता ।।
मागत तुलसीदास कर जोरे । बसहि राम सिय मानस मोरे ।। - मनु ज्योतिष एंव वास्तु शोध संस्थान
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