जयपुर
सूबे की सियासत में इतिहास को दोहराने वाली कहावत सही साबित हो रही है। बहुमत की दहलीत पर पहुंचने के बाद कांगे्रस में सीएम पद के लिए मची खींचतान प्रदेश के लोगों को 10 साल पुरानी बातें याद दिलवा रही है। 2008 में भी कांग्रेस की यहीं स्थिति थी और उस समय भी तीन दिनों तक मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई निर्णय नहीं हो पाया था। हालात यह है कि चुनावी नतीजे आने के बाद घटे घटनाक्रम की अनेक घटनाए तो 2008 में पहले ही घट चुकी है और 10 साल बाद एक बार फिर जनता के सामने आ रही है।
यह है प्रमुख समानताएं
– वर्ष 2008 में भी कांग्रेस को 96 सीटों पर ही संतोष करना पडा था वहीं इस बार 99 सीटें मिली है।
– वर्ष 2008 में भी बसपा को प्रदेश में 6 सीटे मिली थी और इस बार भी इतनी ही सीटें आई है। उस समय भी कांग्रेस ने सभी बसपा विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया था और इस बार भी बसपा ने कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा कर दी है।
– वर्ष 2008 में भी कांग्रेस की राजनीति के दो धडे थे। उसमें एक अशोक गहलोत और दूसरे सी.पी जोशी का धडा था। उस समय सीपी जोशी प्रदेशाध्यक्ष थे वहीं इस बार सचिन पायलट प्रदेशाध्यक्ष हैं और सीएम पद की दावेदारी जता रहें हैं।
– वर्ष 2008 में पर्यवेक्षक के रूप में दिग्विजय सिंह ने आकर मोर्चा संभाला था और निर्णय सोनिया गांधी ने किया था। इस बार पर्यवेक्षक के.सी. वेणुगोपाल हैं और निर्णय राहुल गांधी के हाथ में हैं।
– वर्ष 2008 में भी कांग्रेस भाजपा की सत्ता विरोधी लहर के भरोसे चुनाव जीती थी, इस बार भी सत्ता विरोधी लहर से ही जीत की स्थिति में पहुंची है।
– वर्ष 2008 में भाजपा से डा. किरोडीलाल मीणा अलग हुए थे और मीणा समाज ने भाजपा से नाराजगी जताई थी। इस बार घनश्याम तिवाडी और मानवेन्द्र सिंह भाजपा से अलग हुए और राजपूत समाज व व्यापारी वर्ग ने नाराजगी जताई।
– वर्ष 2008 में भी मतदान प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले एक प्रतिशत कम रहा था वहीं इस बार भी कमोबेश यहीं स्थिति हैं।
– वर्ष 2008 में कांग्रेस विधायकों की बैठक के दौरान महिपाल मदेरणा बैठक छोडकर चले गए थे वहीं इस बार यह काम विश्वेन्द्र सिंह ने किया है।