जयपुर
विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांगे्रस के कई दिग्गज वोटों की आंधी में अपनी सीट नहीं बचा पाए हैं। इन दिग्गजों में अधिकांश तो भाजपा सरकार के केबिनेट मंत्री है वहीं कांग्रेस में डा. गिरिजा व्यास के साथ ही नेता प्रतिपक्ष रहे रामेश्वर डूडी शामिल हैं। भाजपा की ओर से हार का स्वाद चखने वालों में युनूस खान, अरुण चतुर्वेदी, प्रभुलाल सैनी और राजपाल सिंह शेखावत शामिल हैं।
भाजपा के इन नेताओं की हार के पीछे सबसे बडा कारण तो सरकार के प्रति एंटी इनकमबेंसी फैक्टर रहा है। इसके अलावा कुछ स्थानों पर निर्दलीयों ने इनका खेल बिगाड दिया वहीं अनेक नेताओं को विधानसभा क्षेत्र में निष्क्रियता ले डूबी।
सरकार में नंबर 2 के स्थान पर माने जाने वाले युनूस खान को पार्टी ने सीट बदलकर सचिन पायलट की घेराबंदी के लिए टोंक से चुनाव लडवाया। पार्टी नेताओं को आशा थी कि युनूस यहां अल्पसंख्यक वोटों में सेंधमारी कर लेंगे जिससे सचिन पायलट अन्य सीटों पर ध्यान नहीं दे पाएंगे लेकिन यहां वोटों का धु्रवीकरण नहीं हो पाया और बाहरी होने के कारण युनूस खान को करारी हार का सामना करना पडा। यहां युनूस को 54 हजार 861 वोट ही मिले और उनकी हार का अंतर 54 हजार 179 रहा।
कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी भी सीट बदलने के चक्कर में अपनी सीट गंवा बैठे। मूलत: टोंक जिले के सैनी हर बार सीट बदलकर चुनाव लडते रहें हैं। वे पिछली बार बारां जिले की अंता सीट से जीते और इस बार पार्टी ने फिर उन्हें वहीं से चुनाव लडवा दिया। ऐसे में वे यहां वोटरों का साध नहीं पाए। माना जा रहा है कि बाहरी होने के अलावा इस सीट पर उनके लिए जातीगत और स्थानीय समीकरण भी नहीं बैठ पा रहे थे। इसके चलते सैनी को बारां जिले के दिग्गज नेता प्रमोद जैन भाया ने 34 हजार 063 वोटों से हराया।
उद्योग मंत्री राजपाल सिंह शेखावत को सरकार के प्रति राजपूत समाज की नाराजगी का खामियाजा भुगतना पडा है। शेखावत को कडे मुकाबले में कांग्रेस के लालचंद कटारिया ने हराया। इसके अलावा शेखावत की स्पष्टïवादिता और नई कालोनियों में निरन्तर संपर्क नहीं होने के कारण हार का सामना करना पडा है। इसके साथ ही मंत्रीपद पर रहते हुए कार्यकर्ताओं से सीधा संपर्क नहीं बना रहना भी उनकी हार का कारण बना। यहां शेखावत 10 हजार 747 वोटों से हारे हैं।
नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी नोखा में अपने ही बनाए जाल में फंस गए। यहां माहेश्वरी समाज के वोट बैंक को साधने के लिए डूडी ने कन्हैयालाल झंवर को बीकानेर से टिकट दिलवाया लेकिन चुनावों में उन्हें इसका फायदा नहीं मिल पाया। इसके साथ ही नोखा सीट पर हुई पार्टी की भीतरघात के चलते उन्हें हार का सामना करना पडा। यहां भाजपा के बिहारीलाल विश्नोई ने उन्हें 8 हजार 663 वोटों से हराया।
कांगे्रस की दिग्गज नेता गिरिजा व्यास को भी उदयपुर सीट पर हार का सामना करना पडा है। वे गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया से सीधे मुकाबले में हार गई। यहां कटारिया ने व्यास को 9 हजार 307 वोटों से परास्त किया है।